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Tuesday, September 29, 2015
Friday, September 11, 2015
NARENDRA SINGH NEGI- VOICE OF HIMALAYAS
उत्तराखंड का कंठ और “हिमालय की आवाज” हैं नरेद्र सिंह नेगी
लोक सम्मान समिति के एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर मुझे उत्तराखंड गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी के 66 वें जन्म दिवस पर आयोजित लोक सम्मान समारोह में उन्हें जन्म दिन का उपहार समर्पित करने का सौभाग्य मिला। नरेन्द्र सिंह नेगी वास्तव में एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वह केवल गायक नहीं बल्कि एक कवि, गीतकार, संगीतकार और सामाजिक चिंतक भी हैं। बॉलीवुड में लोग दूसरे के लिखे गीत गाने, दूसरे के गाये गीतों पर थिरकने और दूसरे की लिखी पंक्तियों को संगीत में पिरोने पर फिल्मफेयर और दादा साहेब फाल्के से लेकर ऑस्कर जैसे पुरस्कार प्राप्त कर लेते हैं। एक नरेन्द्रसिंह नेगी हैं जो कि स्वयं विविधता से भरपूर लोक जीवन के विभिन्न पहलुओं को उकेर कर लाते हैं और उन्हें अपने गीतों में छंदबद्ध और लयबद्ध कर अपने कंठ से जीवंत कर देते हैं। वह स्वयं गीतकार हैं। स्वयं संगीतकार हैं और स्वयं ही गायक कलाकार भी हैं। यह लोक साहित्य और लोक कला की साधना का इससे उत्कृष्ट नमूना है। भूपेन हजारिका जैसे लोक कलाकार इन्हीं गुणों के चलते देश दुनियां में छा गये और नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों की गूंज देश विदेश के करोड़ों दिलों को गुदगुदाने के बावजूद पुरस्कार देने और पुरस्कारों की सिफारिश करने वालों के कानों तक इसलिये नहीं पहुंच पायी क्योंकि उन कानों में उपेक्षा और दुराग्रह का तेल पहले ही भरा पड़ा रहा।
किसी जमाने में साहित्य का छात्र तो अवश्य रहा हूं मगर मैं साहित्यकार कभी नहीं रहा। सच्चाई यही है कि मैंने जीवन में कभी कविता या कहानी के नाम पर “क” तक नहीं लिखा। ’फिक्शन’ की तो मेरे पेशे में कहीं जगह ही नही है। हां! हम लोग एक्सक्लूसिव या खास खबरों को ’स्टोरी’ जरूर कहा करते हैं। अगर उसी क्षणिकजीवी लेखन को तात्कालिक साहित्य मान लिया जाय तो मैंने टनों के हिसाब से वह साहित्य अवश्य लिखा है जो कि कुछ ही घंटों के अंदर बासी हो जाता है और जिसे कोई दुबारा पढ़ना नहीं चाहता है। भाई नरेन्द्रसिंह नेगी उन महान लोक कलाकारों में से हैं जिनके कंठ से कालजयी गीत फूट पड़ते हैं और जिनका लोक साहित्य बार-बार पढने़ या सुनने के बाद भी “धीत” नहीं भरती। बहरहाल मैं साहित्यकार ना सही साहित्य का छात्र तो रहा ही हूं और हमने अपने छात्र जीवन में अगली कक्षा में जाने के लिये ’रट्टा लगा कर कभी जॉन कीट्स तो कभी विलियम वर्ड्सवर्थ और लॉर्ड एल्फर्ड टेनीसन या कभी पी.बी शेली जैसे कवियों के काव्य की विवेचना अवश्य की होगी। इन महान कवियों में से किसी की महारत रोमांटिसिज्म में तो किसी की मिस्टसिज्म या किसी की ’लिरिसिज्म’ में मानी जाती थी। इसी तरह किसी को ’प्वॉइट आफ लव’ तो किसी को ’प्वॉइट ऑफ नेचर’ कहा जाता था। लेकिन नरेन्द्र सिंह नेगी जैसी असाधारण और ’वर्सेटाइल’ हस्ती को आप ’प्वॉइट ऑफ ऑल’ कहें तो भी कम ही कम है। दरअसल भाई नरेन्द्र सिंह को आप ’प्वॉइट ऑफ लव’ या ’प्रकृति के चितेरे’ के बजाय “वॉयस ऑफ उत्तराखंड” या फिर “हिमालय की आवाज” कहें तो वही संबोधन उनके लिये ज्यादा सटीक बैठते हैं। समकालीन साहित्य समाज विशेष का प्रतिबिम्ब होता है। नेगी जी के लोकसाहित्य के प्रतिबिम्ब में हमें उत्तराखंड का समूचा लोक जीवन नजर आता है।
साहित्य के बारे में मेरा ज्ञानकोश रीता हो चुका है। कॉलेज के दिनों की पढ़ाई की यादें इतनी धुंधली हो चुकी हैं कि लगता है जैसे कुछ पढ़ा ही न हो। फिर भी जहां तक मुझे थोड़ा बहुत याद आता है उसके अनुसार श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है और साहित्य में श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत रस जैसे सारे के सारे रसों का स्वाद आपको नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों में चखने को मिल जाता है। इन रसों के अलावा उनके गीतों में अपनी माटी की सौंदी-सौंदी सी खुशबू और अत्यंत आत्मिक लालित्य की अनुभूति भी होती है। उनके लोक साहित्य में भक्ति है तो विरह की वेदना और मिलन की आतुरता तथा अंतरंगता भी है। उन गीतों में मां का ममत्व भी है तो बहिन का लाड और बेटी-बेटे की ’खुद’ भी है। गढ़वाली में “खुद” ऐसा मार्मिक और आत्मिक (इंटीमेट) भाव है जिसे केवल महसूस ही किया जा सकता है और इसी मीठी-मीठी पीड़ा का अहसास जितना अधिक नेगी के गीतों में होता है उतना कहीं और दुर्लभ ही है। यही नहीं वह कभी-कभी कबीर की तरह अपने गीतों को लेकर समाज की बुराइयों और सड़-गल रही भ्रष्ट व्यवस्था पर भी टूट पड़ते नजर आते हैं। उन्होंने गढ़वाली भाषा की जो सेवा और साधना की है वह अतुलनीय है। मेरे देखते-देखते लोग गढ़वाली या कुमांऊंनी में बात करने से शरमाते थे। अगर अपनी दूधबोली के लिये वह शर्म जारी रहती तो आज तक यह प्राचीन लोकभाषा लुप्त हो चुकी होती। हालांकि आज भी लोकभाषाओं का खतरा मौजूद है, फिर भी नरेन्द्रसिंह नेगी के गीतों पर आज की पीढ़ी के युवा जिस तरह झूमते और मचलते नजर आते हैं, उस उन्माद में हमें आशा की नयी किरण नजर आती है। अपनी दूध बालियों के लिये नरेन्द्र सिंह नेगी, जीतसिंह नेगी, गोपाल बाबू गोस्वामी, हीरासिंह राणा, अनुराधा निराला, प्रीतम भरतवाण, बसंती बिष्ट, हेमा नेगी, किशन महिपाल और केशव अनुरागी जैसे नये पुराने लोक गायकों ने जो सेवा की वह वह असाधारण है।
दरअसल लोक सम्मान समिति से जुड़े लोग नरेन्द्र सिंह नेगी जैसी प्रदेश की प्रतिभाओं की उपेक्षा से आहत है। इसलिये उनके जन्म दिन पर कुछ ऐसी पहल करना चाहते थे ताकि नेगी जैसे लोक संस्कृति के ध्वजवाहक स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकें और उनकी उपेक्षा करने वालों के समक्ष एक नजीर पेश की जा सके। इसी सोच के तहत सारे उत्तराखंडवासियों की ओर से प्रदेश के तमाम लोक कलाकारों की ओर से “नेगी दा” को हजारों देहरादूनवासियों के साथ ही देश दिल्ली, भोपाल, नोयडा, फरीदाबाद और चंडीगढ़ आदि शहरों से पहुंचे उत्तराखंडियों की उपस्थिति में 12 अगस्त 2015 को एक सांस्कृतिक गुलदस्ता भेंट किया गया। हम लोग भाई नरेन्द्र सिंह के जन्म दिन को यादगार बनाने के लिये इस अवसर पर एक कोश या निधि का गठन करना चाहते हैं ताकि हर साल उत्तराखंड की किसी न किसी प्रतिभा को सम्मानित किया जा सके।
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